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ઈસુ ખ્રિસ્ત ઈશ્વર છે તેનો પુરાવો શું છે?વનિતા કસાણીયા પંજાબ દ્વારા!!આપણા માટે, 'શું ભગવાન અસ્તિત્વમાં છે?', અને 'તે કેવા પ્રકારની વસ્તુ પસંદ કરે છે', જ્યાં સુધી ભગવાન સિવાય તે જાણવું અશક્ય છે.

ઈસુ ખ્રિસ્ત ઈશ્વર છે તેનો પુરાવો શું છે? વનિતા કસાણીયા પંજાબ દ્વારા!! આપણા માટે, 'શું ભગવાન અસ્તિત્વમાં છે?', અને 'તે કેવા પ્રકારની વસ્તુ પસંદ કરે છે', જ્યાં સુધી ભગવાન સિવાય તે જાણવું અશક્ય છે.
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یسوع مسیح کے خدا ہونے کا کیا ثبوت ہے؟از ونیتا کاسانیہ پنجاب!!ہمارے لیے حتمی طور پر یہ جاننا ناممکن ہے کہ 'کیا خدا موجود ہے؟'، اور 'وہ کس قسم کی چیز کو پسند کرتا ہے'، جب تک کہ خدا نہ ہو۔

یسوع مسیح کے خدا ہونے کا کیا ثبوت ہے؟ از ونیتا کاسانیہ پنجاب!! ہمارے لیے حتمی طور پر یہ جاننا ناممکن ہے کہ 'کیا خدا موجود ہے؟'، اور 'وہ کس قسم کی چیز کو پسند کرتا ہے'، جب تک کہ خدا نہ ہو۔

యేసుక్రీస్తు దేవుడనడానికి రుజువు ఏమిటి?వనితా కసానియా పంజాబ్ ద్వారా!!భగవంతుడుంటే తప్ప, 'దేవుడు ఉన్నాడా?', 'ఆయన ఎలాంటివాడు' అని నిశ్చయంగా తెలుసుకోవడం అసాధ్యం.

యేసుక్రీస్తు దేవుడనడానికి రుజువు ఏమిటి? వనితా కసానియా పంజాబ్ ద్వారా!! భగవంతుడుంటే తప్ప, 'దేవుడు ఉన్నాడా?', 'ఆయన ఎలాంటివాడు' అని నిశ్చయంగా తెలుసుకోవడం అసాధ్యం.

यीशु मसीह परमेश्वर हैं, इसका क्या सबूत है? By वनिता कासनियां पंजाब !! हमारे लिए, निर्णायक रूप से यह जानना कि ‘क्या परमेश्वर का अस्तित्व है?’, और ‘वह किस प्रकार का है’, तब तक असंभव है, जब तक परमेश्वर स्वयं पहल नहीं करता और अपने आप को प्रकट नहीं करता।परमेश्वर के रहस्योद्घाटन का कोई सुराग ढ़ूँढने के लिए हमें इतिहास के पन्नों पर दृष्टि डालनी होगी। इसका एक स्पष्ट चिह्न है। 2000 साल पहले, पैलेस्टाइन के एक अव्यस्त गाँव के अस्तबल में, एक बच्चे का जन्म हुआ। आज पूरा संसार यीशु मसीह के जन्म का उत्सव मना रहा है, और सही कारण से – उनके जीवन ने इतिहास का मार्ग बदल दिया।लोगों ने यीशु को कैसे देखाहमें बताया गया है कि “आम आदमी यीशु की बातों को प्रसन्नतापूर्वक सुनते थे।” और “वह उन्हें यहूदी धर्म नेताओं के समान नहीं, बल्कि एक अधिकारी के समान शिक्षा दे रहा था।”मगर, जल्द ही यह स्पष्ट हो गया कि वह अपने बारे में बहुत ही चौकानेवाला और चमत्कारिक बयान दे रहा था। उसने अपने आप को विलक्षण शिक्षक और पैगंबर से ज्यादा महान बताया। उसने साफ शब्दों में कहा कि वह परमेश्वर है। उसने अपनी शिक्षा में अपनी पहचान को मुख्य मुद्दा बनाया।अपने अनुयायीयों से, यीशु ने सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा, “और तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?” तब शमौन पतरस ने उत्तर दिया, “कि तू जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह है।” यह सुनकर यीशु मसीह हैरान नहीं हुआ, न ही उसने पतरस को डाँटा। उसके विपरीत, यीशु ने उस की सराहना की!यीशु मसीह अक्सर “मेरे पिता” कहकर परमेश्वर को संबोधित करते थे, और उनके सुननेवालों पर उनके शब्दों का पूरा प्रभाव पड़ता था। हमें बताया गया है, “इस कारण यहूदी और भी अधिक उस को मार डालने का प्रयत्न करने लगे; क्योंकि वह न केवल सब्त (विश्राम दिन) के दिन की विधि को तोड़ता, परन्तु परमेश्वर को अपना पिता कह कर, अपने आप को परमेश्वर के तुल्य ठहराता था॥” एक दूसरे अवसर पर उन्होंने कहा, “मैं और मेरे पिता एक हैं।” उसी समय यहूदियों ने उसे पत्थर मारना चाहा। यीशु मसीह ने उनसे पूछा कि उसके किस अच्छे कामों के लिए वे उसे (यीशु को) पत्थर मारने के लिए प्रेरित हुए?” उन लोगों ने उत्तर दिया, “भले काम के लिये हम तुझे पत्थरवाह नहीं करते, परन्तु परमेश्वर की निन्दा के कारण, और इसलिये कि तू मनुष्य होकर अपने आप को परमेश्वर बनाता है।”यीशु ने अपने बारे में यह कहायीशु ने स्पष्ट रूप से उन शक्तियों का दावा किया, जो केवल परमेश्वर के पास हैं। जब एक लकवा मारा हुआ व्यक्ति छत से उतारा गया, ताकि वह यीशु के द्वारा चंगा हो सके, यीशु ने कहा, “पुत्र, तुम्हारे पापों से तुम्हे क्षमा कर दिया गया है।” यह सुनकर धर्मशास्त्रियों ने तुरंत प्रतिक्रया व्यक्त की कि, “यह व्यक्ति इस तरह की बातें क्यों कर रहा है? वह परमेश्वर का अपमान कर रहा है! परमेश्वर के सिवा, कौन पापों को क्षमा कर सकता है?” तब यीशु ने उनसे कहा, “कौन सा आसान है: इस लकवे से पीड़ित आदमी को कहना कि ‘तुम्हारे पाप क्षमा हो गए हैं,’ या ‘उठो और चलो’?”यीशु ने आगे बोला, “परन्तु जिस से तुम जान लो कि मुझ को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का भी अधिकार है, उसने उस लकवे के रोगी से कहा, “मैं तुझ से कहता हूँ, उठ, अपनी खाट उठाकर अपने घर चला जा।” वह उठा और तुरन्त खाट उठाकर सब के सामने से निकलकर चला गया; इस पर सब चकित हुए।यीशु ने इस तरह के बयान भी दिए: “मैं इसलिये आया कि वे जीवन पाएँ, और बहुतायत से पाएँ।” और “जगत की ज्योति मैं हूँ।” और उसने कई बार यह कहा कि जो कोई उस पर विश्वास करेगा, यीशु उन्हें अनन्त जीवन देगा। “और उस पर दण्ड की आज्ञा नहीं होती, परन्तु वह मृत्यु से पार होकर जीवन में प्रवेश कर चुका है।” “और मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ। वे कभी नष्ट न होंगे।”उन महत्वपूर्ण क्षणों में, जब यीशु की ज़िंदगी दाव पर लगी थी, इस तरह के दावा करने के लिए, महायाजक ने उस से सीधा सवाल किया: “क्या तू उस परम धन्य का पुत्र मसीह है?”“हाँ, मैं हूँ,” यीशु ने कहा। “और तुम मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान की दाहिनी और बैठे, और आकाश के बादलों के साथ आते देखोगे।”तब महायाजक ने अपने वस्त्र फाड़कर कहा, “अब हमें गवाहों का और क्या प्रयोजन है, तुम ने यह अपमान पूर्ण बातें कहते हुए इसे सुना।”यीशु मसीह का परमेश्वर से सम्बंध इतना गहरा था कि उसने एक मनुष्य के उसके प्रति मनोभावों को, और परमेश्वर के प्रति उनके मनोभावों को, एक बराबर बताया। अतः, उसे जानना प्रभु को जानना था। उसे देखना प्रभु को देखना था। उसपर विश्वास करना प्रभु पर विश्वास करना था। उसे ग्रहण करना प्रभु को ग्रहण करना था। उससे बैर रखना प्रभु से बैर रखना था। उसका आदर करना प्रभु का आदर करना था।संभावित स्पष्टीकरणप्रश्न यह है कि, क्या वह सच बोल रहा था?हो सकता है की यीशु ने झूठ बोला, जब उन्होने अपने आप को परमेश्वर कहा। हो सकता है कि वह जानते थे कि वह परमेश्वर नहीं है, और जान-बूझकर उन्होंने अपने सुननेवालों को धोखा दिया, ताकि अपने शिक्षण को वह एक अधिकार दे सकें। कुछ लोग ऎसा सोचते हैं। परंतु इस तर्क में एक समस्या है। जो लोग उसका दैव्य होने का इंकार करते हैं, वो तक इस बात को मानते हैं कि यीशु एक महान नैतिक शिक्षक थे। लेकिन वे इस बात को समझने में असफल रहते हैं कि दोनों बयान परस्पर विरोधी हैं। यीशु मसीह महान नैतिक शिक्षक कैसे होते, अगर, उनकी शिक्षाओं के सबसे महत्वपूर्ण विषय — उनकी पहचान — के बारे में वह जान-बूझकर झूठ बोलते ?“जब हम यीशु मसीह के दावों को देखते हैं, तो केवल चार संभावनाएँ दिखाई देती हैं। या तो वह झूठे हैं, या मानसिक रूप से बीमार हैं, वह एक दिव्य चरित्र हैं, या फिर सत्य हैं।”दूसरी संभावना यह है कि यीशु मसीह ईमानदार थे, पर स्वयं को धोखा दे रहे थे। आजकल, उस व्यक्ति को, जो की यह सोचता है के वह भगवान/परमेश्वर है, एक नाम से बुलाया जाता है- मानसिक रूप से विकलांग। पर जब हम यीशु मसीह के जीवन की ओर देखते हैं, तो हमें अपसामान्यता और असंतुलन का, जो कि एक मानसिक रोगी में होता है, कोई प्रमाण नहीं मिलता। बल्कि, हमें यीशु में गहरे दबाव के समय भी, असीम धैर्य दिखाई देता है।एक तीसरा विकल्प यह है कि, तीसरे और चौथे शताब्दियों में यीशु उत्साही अनुयायियों ने उनके कहे हुए शब्दों को बढ़ा-चढ़ा के प्रस्तुत किया, और यदि यीशु उन्हें सुनते तो वह चौंक जाते । और यदि वह वापस आते, तो वह तुरंत उन्हें अस्वीकार कर देते।यह सही इसलिए नहीं है, क्योंकि आधुनिक पुरातत्व इस बात की पुष्टि करते हैं कि मसीह की चार जीवनियाँ उन लोगों के जीवनकाल में लिखी गई थी जिन्होंने यीशु को देखा, सुना और उसके पीछे चले। इन सुसमाचार के खातों में उन विशिष्ट तथ्यों और विशेषताओं का वर्णन है, जिसकी पुष्टि उन लोगों ने की है जो यीशु के प्रत्यक्ष साक्षी थे।विलियम एफ अलब्राइट, जो कि अमेरीका के जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के साथ एक विश्व-प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद् हैं, ने कहा, की ऐसा सोचने का कोई कारण नहीं है कि किसी भी सुसमाचार को 70 ए.डी. (ईसा पश्चात्) के बाद लिखा गया था। मत्ती, मरकुस, लूका और यूहन्ना द्वारा सुसमचर शुरुआत में ही लिखे जाने के कारण, उसका संचलन और प्रभाव अधिक था।यीशु मसीह ना तो झूठे थे, और ना ही मानसिक रूप से विकलांग, ना ही उनको ऐतिहासिक सच्चाई से परे निर्मित किया गया था। केवल एक अन्य विकल्प यह हो सकता है कि यीशु मसीह पूर्ण रूप से सच्चे थे जब उन्होंने यह कहा कि वह परमेश्वर हैं।यीशु मसीह परमेश्वर हैं, इसका क्या सबूत है?कोई भी, कुछ भी दावे कर सकता है। ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने परमेश्वर होने के दावे किए। मैं परमेश्वर होने का दावा कर सकता हूँ, आप भी परमेश्वर होने का दावा कर सकते हैं। पर यदि हम ऐसा करते हैं, तो इस प्रश्न का उत्तर हम सभी को देना पड़ेगा, “हम अपने दावे को साबित करने के लिए क्या ठोस सबूत, या प्रमाण पत्र ला सकते हैं?” मेरे बारे में पूँछे तो, मेरे दावे का खंडन करने में आपको पाँच मिनट भी नहीं लगेंगे। आपके दावे का खंडन करने में भी शायद इससे ज्यादा समय न लगे। पर बात जब नासरत के यीशु मसीह की आती है, तब उनके दावे का खंडन करना इतना आसान नहीं है। उनके पास अपने दावे को पूरा करने का प्रमाण पत्र था। उन्होंने कहा, “…तो चाहे [तुम] मेरा विश्वास न भी करो, परन्तु उन कामों का तो विश्वास करो, ताकि तुम जानो और समझो कि पिता मुझ में है और मैं पिता में हूँ।”यीशु के जीवन की गुणवत्ता- उनका अद्वितीय नैतिक चरित्रउनका अद्वितीय नैतिक चरित्र उनके दावे से मेल खाता हुआ था। उनकी जीवन शैली इस तरह की थी कि वह अपने शत्रुओं को अपने प्रश्नों द्वारा चुनौती दे सकते थे, “तुम में से कौन मुझे पापी ठहरा सकता है?”उन्हें चुप्पी मिली (कोई कुछ ना बोल सका), जब कि उन्होंने उनको संबोधित किया जिन्होंने उनके चरित्र में दोष ढूँढ़ने की चेष्टा की थी।हम पढ़ते हैं कि यीशु मसीह को शैतान द्वारा प्रलोभित किया गया, पर हमने कभी भी उनसे कोई पाप करने की स्वीकारोक्ति नहीं सुनी। उन्होंने कभी भी क्षमा-याचना नहीं की, हालांकि उन्होंने अपने अनुयायियों से ऐसा करने को कहा।यीशु में कोई भी नैतिक विफलता ना होने की भावना, आश्चर्यजनक है, विशेषत: जब हम यह देखते हैं कि वह उन अनुभवों के बिल्कुल विपरीत है जो संतों और मनीषियों ने पूर्णतया, उम्रभर अनुभव किए। नर और नारी जितना परमेश्वर के समीप जाते हैं, उतना ही ज्यादा वे अपनी विफलता/असफलता, भ्रष्टाचार और कमियों से अभिभूत होते हैं। एक चमकते हुए प्रकाश के निकट जितना कोई जाए, उसे अपने को स्वछ करने की आवश्यकता का अधिक एहसास होता है। साधारण मनुष्यों के लिये, नैतिक क्षेत्र में यह सत्य है।यह भी उल्लेखनीय है कि यूहन्ना, पौलुस, और पतरस, जिनको बचपन से ही पाप की सार्वभौमता पर विश्वास करने का प्रशिक्षण मिला था, उन सभी ने यीशु मसीह के पाप रहित होने की चर्चा की “न तो उस ने पाप किया, और न उसके मुंह से छल की कोई बात निकली।”पिलातुस ने भी, जिसने यीशु मसीह को मृत्युदंड सुनाया, यह पूछा, “इसने ऎसा क्या पाप किया है?” भीड़ की बात सुनने के बाद पिलातुस ने यह निष्कर्ष निकाला, “मैं इस धर्मी के लहू से निर्दोष हूँ; तुम लोग जानो।” भीड़ निर्दयतापूर्वक यीशु को क्रूस पर चढ़ाने की माँग करती रही (परमेश्वर–निन्दा के लिये, परमेश्वर होने का दावा करने के लिये)। रोमी सेना नायक, जिसने यीशु को क्रूस पर चढ़ाने में हाथ बँटाया था, कहा, “सचमुच यह परमेश्वर का पुत्र था।”यीशु मसीह ने बीमारों को चंगा कियायीशु ने निरंतर अपनी शक्ति/सामर्थ और करुणा का प्रदर्शन किया। उन्होंने लँगड़ों को चलाया, गूंगों से बुलवाया और अंधों को दिखाया, और अनेक रोगियों को चांगई दी। उदाहरणस्वरूप, एक भिखारी, जो जन्म से अंधा था और जिसको सब पहचानते थे, आराधनालय के बाहर बैठता था। यीशु मसीह से चंगाई पाने के बाद, धार्मिक अधिकारियों ने भिखारी से यीशु के बारे में पूछ ताछ की। तब उसने कहा, “एक चीज मैं जानता हूँ। मैं अंधा था, पर अब मैं देख सकता हूँ!” उसने ऐलान किया। उसे आश्चर्य हो रहा था कि इन धर्म के प्राधिकारियों ने इस आरोग्य करनेवाले को परमेश्वर के पुत्र के रूप में कैसे नहीं पहचाना। “जगत के आरम्भ से यह कभी सुनने में नहीं आया कि किसी ने जन्म के अंधे की आँखें खोली हों,” उसने कहा। उसके लिए यह प्रमाण स्पष्ट था।प्रकृति को नियंत्रित करने की उनकी क्षमतायीशु मसीह ने प्रकृति पर एक अलौकिक शक्ति का प्रदर्शन किया। केवल शब्दों द्वारा, उन्होंने गलील के समुद्र पर तेज हवाओं और लहरों वाले तूफान को शांत किया। जो नावों पर सवार थे वे अचंभा करके आपस में पूछने लगे, “यह कौन है, कि आँधी और पानी भी उस की आज्ञा मानते हैं? एक विवाह में उन्होंने पानी को दाखरस में बदल दिया। उन्होंने 5000 लोगों की भीड़ को पांच रोटियों और दो मछलियों से खाना खिलाया। उन्होंने एक दुखी विधवा के इकलौते बेटे को मृत से जीवित कर दिया।लाज़र, यीशु का मित्र, मर गया था और चार दिनों तक वह कब्र में था। फिर भी यीशु ने उसे पुकारा, “हे लाज़र, निकल आ!” और उसे मृत्यु से वापस जीवित कर दिया, और अनेक लोग इस के गवाह थे। यह सबसे महत्वपूर्ण बात है कि उनके शत्रुओं ने इस चमत्कार से इनकार नहीं किया, बल्कि, उन्हें मारने का फैसला लिया। “यदि हम उसे यों ही छोड़ दे,” उन्होंने कहा, “तो सब उस पर विश्वास ले आएंगे।”क्या यीशु परमेश्वर है, जैसा कि उन्होंने दावा किया?यीशु मसीह के परमेश्वर होने का सर्वोच्च सबूत उनके मृत होने के बाद उनका पुनरुत्थान (मरे हुओं में से जी उठना) है। अपने जीवनकाल में, पाँच बार यीशु ने स्पष्ट रूप से भविष्यवाणी की कि किस विशिष्ट तरीके से उन्हें मारा जाएगा और इस बात की पुष्टि की कि तीन दिन बाद वह मृत शरीर को छोड़कर फिर जीवित हो जाएँगे।निश्चित रूप से यह एक बड़ा परीक्षण था। यह एक ऐसा दावा था जिसे प्रमाणित करना आसान था। या तो ऐसा होता, या फिर नहीँ। या तो यह उनकी बताई गई पहचान को सच साबित कर देता, या नष्ट कर देता। और, आपके और मेरे लिए जो महत्वपूर्ण बात है, वो यह है – यीशु के पुनरुत्थान से या तो इन बातों की पुष्टि होती, या यह बयान उपहास बन जाते:“मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।” “जगत की ज्योति मैं हूं; जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अन्धकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा।” और जो मुझ पर विश्वास करेगा, “मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ…”तो, इस प्रकार अपने ही शब्दों में उन्होंने यह प्रमाण दिया, “मनुष्य का पुत्र, मनुष्यों के हाथ में पकड़वाया जाएगा, और वे उसे मार डालेंगे; और वह मरने के तीन दिन बाद जी उठेगा।”यीशु मसीह कौन है?अगर यीशु मरे हुओं में से जीवित हुए, तो जो कुछ उन्होंने कहा कि वह हमें प्रदान करते हैं, वह उसे पूरा कर सकते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि वह निसंदेह पापों को क्षमा कर सकते हैं, हमें अनंत जीवन दे सकते हैं, और इस जीवन में हमारा मार्ग दर्शन कर सकते हैं। वह परमेश्वर हैं, इसलिए अब हम जान गए हैं की परमेश्वर कैसा है और हम उसके निमंत्रण को स्वीकार कर सकते हैं- उन्हें व्यक्तिगत रूप से और हमारे लिए उनके प्रेम को जानने के लिए।“कहना आसान होता है। दावे कोई भी कर सकता है। पर बात जब नासरत के यीशु मसीह की आती है… उनके पास अपने दावे का समर्थन करने के पूरे प्रमाण थे।”दूसरी ओर, अगर यीशु मसीह मरे हुओं में से नहीं जी उठे, तो मसीही धर्म की कोई वैधता या वास्तविकता नहीं है। इसका मतलब ये सब झूठ है, और यीशु केवल एक आम आदमी थे जो कि मर चुका है। और वे लोग जो मसीही धर्म के लिए शहीद हुए, और समकालीन धर्मप्रचारक, जिन्होंने उनका संदेश दूसरों को देने में अपने प्राण तक गँवा दिए, भ्रांतिमूलक मूर्ख थे।क्या यीशु ने सिद्ध किया कि वह परमेश्वर हैं?आइए यीशु के पुनरुत्थान के प्रमाणों पर एक नजर डालें –यीशु ने जितने भी चमत्कारों का प्रदर्शन किया, उन्हें देखकर यह कहा जा सकता है कि वह आसानी से क्रूस से अपने आपको बचा सकते थे, पर उन्होंने ऐसा करना नहीं चुना।बंदी बनने से पहले, यीशु ने कहा, “कोई मुझ से मेरा प्राण नहीं छीन सकता; मैं स्वयं उसे अर्पित करता हूँ। मुझे अपना प्राण अर्पित करने और उसे फिर प्राप्त करने का अधिकार है।”उसे बंदी बनाते समय, यीशु के मित्र पतरस ने उन्हें बचाने की चेष्टा की। परंतु, यीशु ने पतरस से कहा, “अपनी तलवार म्यान में रख ले…क्या तू नहीं जानता कि मैं अपने पिता से विनती कर सकता हूँ, और वह स्वर्गदूतों की बारह पलटन से अधिक मेरे पास अभी उपस्थित कर देगा?” स्वर्ग और पृथ्वी, दोनों में, उनके पास इस प्रकार की शक्ति थी। यीशु मसीह ने अपनी इच्छा से अपनी मृत्यु को स्वीकार किया।यीशु का क्रूस पर चढ़ाया जाना और गाढ़ा जानायीशु की मृत्यु भीड़ के सामने उन्हें क्रूस पर चढ़ाकर की गई। यह रोमन सरकार का, कई शताब्दियों से चला आ रहा, यातना देकर मृत्यु देने का एक आम तरीका था। यीशु ने कहा कि यह हमारे पापों का भुगतान करने के लिए था। यीशु के विरुद्ध आरोप परमेश्वर-निन्दा (परमेश्वर होने का दावा करने का) था।यीशु को अनेक रस्सियों से बने मोटे कोड़े से मारा गया जिसमें धातु और हड्डी के खंडित टुकड़े जड़े थे। उनका ठट्ठा उड़ाने के लिए, लंबे काँटों से बनाया गया मुकुट उनके सिर पर रखा गया। उन्होंने यीशु मसीह को यरुशलेम के बाहर, उस प्राणदण्ड के पहाड़ पर पैदल चल कर जाने के लिए मजबूर किया, जहाँ उन्हें एक लकड़ी के क्रूस पर लटकाया गया, और उनके पैरों और हाथों को क्रूस पर कीलों से ठोक दिया गया। जब तक वह मर नहीं गए, उस क्रूस पर लटके रहे। यह जानने के लिए कि वह मर चुके हैं या नहीं, उनके पंजर को बरछे से बेधा गया।यीशु के शव को क्रूस से उतारा गया, और उसे सुगन्ध-सामग्री के साथ चादर में लपेटा गया। उन के शव को एक कब्र में, जो चट्टान में खोदी गई थी, रख दिया, और फिर कब्र के प्रवेश द्वार पर एक बड़ा पत्थर लुढ़का कर टिका दिया गया, ताकि द्वार सुरक्षित रहे।सब जानते थे कि यीशु ने कहा था कि वह तीन दिन बाद मृत शरीर से जीवित हो उठेंगे। अतः उनकी कब्र पर प्रशिक्षित रोमन सैनिक पहरेदारों को तैनात कर दिया गया। उन्होंने कब्र के बाहर एक सरकारी रोमन मुहर लगा दी ताकि यह घोषित हो सके कि यह सरकारी संपत्ति है।तीन दिन बाद, वह कब्र खाली थीइन सब के बावजूद, तीन दिन बाद, वह पत्थर जो कि कब्र को सीलबंद कर रहा था, कब्र से कुछ दूर एक ढलान पर पाया गया। यीशु का शरीर वहाँ नहीं था। कब्र में केवल चादर पड़ी थी, बिना शव के।इस बात पर ध्यान देना आवश्यक है कि यीशु के आलोचक और अनुयायी, दोनों मानते हैं कि कब्र खाली थी और उनका शरीर गायब था।शुरुआत में इस स्पष्टीकरण को परिचालित किया जा रहा था कि जब पहरेदार सो रहे थे तब उनके शिष्यों ने उनका शरीर चुरा लिया था। पर यह तथ्यहीन लगता है, क्योंकि रोमन सेना के प्रशिक्षित पहरेदारों का इस प्रकार, पहरे के समय, सो जाना मृत्युदंड के अपराध से कम नहीं था।इसके अलावा, प्रत्येक शिष्य को (अकेला करके और विभिन्न भौगोलिक स्थानों में) यातना दी गई और शहीद किया गया, इस दावे के लिए कि यीशु जीवित थे और मरे हुओं में से जी उठे थे। पर वे अपने दावों से नहीं पलटे। कोई भी इंसान उस सच्चाई के लिए मरने के लिए तैय्यार होता है जिसको वह सच मानता है, चाहे वह वास्तव में झूठ हो। परंतु, वह उस बात के लिए नहीं मरना चाहता जो वह जानता है की झूठ है। यदि कोई ऐसा समय है जब एक इंसान सत्य बोलता है, तो वह उसकी मृत्यु की निकटता के समय पर होता है। हर शिष्य अंत तक यीशु के जी उठने का प्रचार करता रहा।हो सकता है कि प्राधिकारियों ने यीशु के शरीर को वहाँ से हटा दिया हो? पर यह भी एक कमजोर संभावना है। उन्होंने यीशु को क्रूस पर चढ़ाया, ताकि वे लोगों को उन पर विश्वास करने से रोक सकें। अगर उनके पास यीशु का शरीर (शव) होता, तो वे उसे यरुशलेम के नगर में उसका परेड करते। एक ही बारी में वे सफलतापूर्वक मसीही धर्म को दबाने में कामयाब हो जाते। कि उन्होंने ऐसा नहीं किया, यह इस बात की महान गवाही देता है कि उनके पास यीशु का मृत शरीर नहीं था।एक दूसरा मत यह है कि महिलाएँ (जिन्होंने सबसे पहले यीशु की खाली कब्र को देखा) व्याकुल और दुख से अभिभूत होकर सुबह के धुंधलेपन में अपना रास्ता भूलकर गलत कब्र में चली गई हों। अपनी पीड़ा में उन्होंने कल्पना कर ली कि यीशु पुनःजीवित हो गए हैं, क्योंकि कब्र खाली थी। पर इस बात में भी संदेह है क्योंकि यदि औरतें गलत कब्र में चली गईं, तो महायाजकों और धर्म के दूसरे दुश्मनों ने सही कब्र पर जाकर यीशु का शरीर क्यों नहीं दिखाया?एक अन्य संभावना, कुछ लोगों के अनुसार, “बेहोशी का सिद्धांत” है। इस सिद्धांत के अनुसार, यीशु वास्तव में मरे ही नहीं। उन्हें भूल से मृत माना गया था, और वास्तव में थकान, दर्द, और खून की कमी के कारण वह बेहोश हो गए थे, और कब्र में ठंडक होने की वजह से उन में चेतना लौट आई। (इस हिसाब से, आपको इस तथ्य को अनदेखा करना होगा कि उसके पंजर को बरछे से बेधा गया था, ताकि यह सिद्ध किया जा सके कि वह मर चुका था।)“कोई भी इंसान उस सच्चाई के लिए मरने के लिए तैय्यार होता है जिसको वह सच मानता है, चाहे वह वास्तव में झूठ हो। परंतु, वह उस बात के लिए नहीं मरना चाहता जो वह जानता है की झूठ है।”लेकिन, आइए हम एक क्षण के लिए यह मान लें कि यीशु को जिन्दा गाढ़ा गया और वह बेहोश थे। तो क्या यह विश्वास करना संभव है कि तीन दिन तक वह बिना भोजन या पानी के, या किसी भी प्रकार की देखभाल के, एक नम कब्र में जीवित रहे होंगे? क्या उन में इतनी ताकत थी कि अपने आप को कब्र के कपड़े से बाहर निकाले, भारी पत्थर को कब्र के मुँह से हटाएँ, रोमन पहरेदारों पर विजय पाएं, और मीलों तक उन पैरों पर चलकर जाएँ, जिनको कि कीलों से बेधा गया था? इसका कोई तुक नहीं बनता।तो भी, केवल खाली कब्र ने अनुयायियों को यह विश्वास नहीं दिलाया कि यीशु वास्तव में परमेश्वर थे।“केवल खाली कब्र ही नहीं”केवल खाली कब्र ने उन्हें यह विश्वास नहीं दिलाया कि यीशु वास्तव में मरे हुओं में से जीवित हुए, वह जीवित थे, और वह परमेश्वर थे। इन सब बातों ने भी उन्हें विश्वास दिलाया – यीशु कई बार दिखाई दिए, जीवित हाड़ माँस के व्यक्ति के रूप में, और उन्होंने उनके साथ खाना खाया, उनसे बातें कीं – विभिन्न स्थानों, विभिन्न समय, विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ उन्होंने बात की। लूका, सुसमाचार के लेखकों में से एक, ने यीशु के बारे में कहा, “उसने अपने आपको बहुत से ठोस प्रमाणों के साथ उनके सामने प्रकट किया कि वह जीवित है। वह चालीस दिनों तक उनके समने प्रकट होता रहा तथा परमेश्वर के राज्य के विषय में उन्हें बताता रहा।”क्या यीशु मसीह परमेश्वर हैंसुसमाचार के चारों लेखक ये बताते हैं कि यीशु को गाढ़ने के बाद वह शारीरिक रूप से उन्हें दिखाई पड़े। एक बार जब वह शिष्यों को दिखाई दिए, तो थोमा (एक शिष्य) वहाँ नहीं था। जब दूसरे शिष्यों ने थोमा को उनके बारे में बताया तो थोमा ने विश्वास नहीं किया। उसने सीधा-सीधा बोला, “जब तक मैं उसके हाथों में कीलों के छेद देख न लूँ और कीलों के छेदों में अपनी उंगलियाँ न डाल लूँ, और उसके पंजर में अपना हाथ न डाल लूँ, तब तक मुझे विश्वास ना होगा।”एक सप्ताह बाद यीशु उन्हें फिर से दिखाई दिए। उस समय थोमा भी उनके साथ था। यीशु ने थोमा से कहा, “अपनी उंगली डाल और मेरे हाथों को देख, और अपने हाथ लाकर मेरे पंजर में डाल। संदेह करना छोड़ और विश्वास कर।” यह सुनकर थोमा ने जवाब दिया, “हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर।”यीशु ने उससे कहा, “तूने मुझे देखकर, मुझमें विश्वास किया है। वे लोग धन्य हैं जिन्होंने बिना देखे विश्वास किया।”यीशु आपको क्या प्रदान करते हैंमसीह, जीवन को उद्देश्य और दिशा देते हैं। “जगत की ज्योति मैं हूँ,” वह कहते हैं। “जो मेरे पीछे हो लेगा वह अन्धकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा।”कई लोग सामान्य रूप से जीवन के उद्देश्य, और विशेष रूप से अपने स्वयं के जीवन के बारे में, अंधेरे में हैं। ऐसा महसूस होता है जैसे की वो अपने जीवन में बत्ती जलाने वाला स्विच खोज रहे हैं। जो कोई भी अंधेरे में, या किसी अपरिचित कमरे में रहा है, वह असुरक्षा की भावना के बारे में बहुत अच्छे से जनता है। लेकिन, जब बत्ती जलती है, तो एक सुरक्षा की भावना होती है। ठीक ऐसे ही महसूस होता है जब हम अंधेरे से, यीशु मसीह की ज्योति में कदम रखते हैं।दिवंगत विश्लेषी मनोविज्ञानिक, कार्ल गुसतव जंग, ने कहा, “हमारे समय की सबसे नाज़ुक समस्या, खालीपन है। हम सोचते हैं कि हमारे अनुभव, हमारा ज्ञान, रिश्ते, पैसा, सफलता, कामयाबी, प्रसिद्धी, हमें वह आनंद प्रदान करेंगे, जिस की हमें खोज है। पर हमेशा एक खालीपन रह जाता है। ये सब पूरी तरह से संतुष्ट नहीं करतीं। हम परमेश्वर के लिए बनाए गए है, और हमें तृप्ति केवल उन्ही में प्राप्त होगी।”यीशु ने कहा, “जीवन की रोटी मैं हूँ: जो मेरे पास आता है वह कभी भूखा न होगा, और जो मुझ पर विश्वास करता है वह कभी प्यासा न होगा।”आप यीशु के साथ एक घनिष्ट संबंध इसी समय स्थापित कर सकते हैं। आप पृथ्वी पर, इस जीवन में परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से जान सकते हैं, और मरने के बाद अनंत काल में। यहाँ परमेश्वर का वायदा है, जो उसने हमसे किया है:“क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना इकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उसपर विश्वास करे, उसका नाश न हो, परन्तु वह अनन्त जीवन पाए।”यीशु ने हमारे पापों को, क्रूस पर, अपने ऊपर ले लिया। हमारे पापों के लिए उन्होंने दंड स्वीकार किया, ताकि हमारे पाप उनके और हमारे बीच में दीवार न बन सकें। क्योंकि उन्होंने हमारे पापों का पूरा भुगतान किया, वह हमें पूर्ण क्षमा और अपने साथ एक रिश्ता प्रदान करते हैं।यहाँ बताया गया है कि आप इस रिश्ते की शुरुआत कैसे कर सकते हैं।यीशु ने कहा, “देख, मैं [तेरे हृदय के] द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूं; यदि कोई मेरा शब्द सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके घर में प्रवेश करूँगा…।”आप यीशु मसीह को इसी समय अपने जीवन में आमंत्रित कर सकते हैं। आपके शब्द नहीं, केवल आपकी उसके प्रति प्रतिक्रिया, मुख्य है। यह जानते हुए कि उसने आपके लिए क्या किया है, और क्या कर रहा है, आप उससे कुछ ऐसे कह सकते हैं, “यीशु, मैं आप पर विश्वास करता हूँ। मेरे पापों के लिए क्रूस पर मरने के लिए आपका घन्यवाद। मैं चाहता हूं कि आप मुझे क्षमा करें और अभी इसी समय मेरे जीवन में आइए। मैं आपको जानना चाहता हूँ और आपके पीछे चलना चाहता हूँ। मेरे जीवन में आने के लिए, और मेरे साथ इसी समय से एक रिश्ता बनाने के लिए, आपका धन्यवाद।” |

यीशु मसीह परमेश्वर हैं, इसका क्या सबूत है? By वनिता कासनियां पंजाब !! हमारे लिए, निर्णायक रूप से यह जानना कि ‘क्या परमेश्वर का अस्तित्व है?’, और ‘वह किस प्रकार का है’, तब तक असंभव है, जब तक परमेश्वर स्वयं पहल नहीं करता और अपने आप को प्रकट नहीं करता। परमेश्वर के रहस्योद्घाटन का कोई सुराग ढ़ूँढने के लिए हमें इतिहास के पन्नों पर दृष्टि डालनी होगी। इसका एक स्पष्ट चिह्न है। 2000 साल पहले, पैलेस्टाइन के एक अव्यस्त गाँव के अस्तबल में, एक बच्चे का जन्म हुआ। आज पूरा संसार यीशु मसीह के जन्म का उत्सव मना रहा है, और सही कारण से – उनके जीवन ने इतिहास का मार्ग बदल दिया। लोगों ने यीशु को कैसे देखा हमें बताया गया है कि “आम आदमी यीशु की बातों को प्रसन्नतापूर्वक सुनते थे।” और “वह उन्हें यहूदी धर्म नेताओं के समान नहीं, बल्कि एक अधिकारी के समान शिक्षा दे रहा था।” मगर, जल्द ही यह स्पष्ट हो गया कि वह अपने बारे में बहुत ही चौकानेवाला और चमत्कारिक बयान दे रहा था। उसने अपने आप को विलक्षण शिक्षक और पैगंबर से ज्यादा महान बताया। उसने साफ शब्दों में कहा कि वह परमेश्वर है। उसने अपनी शिक्षा में अपनी पहचा...

जीवन से संबंधित प्रश्न जीवन इतना कठिन क्यों है? By वनिता कासनियां पंजाब “क्यों?” जब जीवन कठिन हो, तब शांति पाने का क्या कोई रास्ता है? जो कुछ हम इस दुनिया में देखते उसे कैसे समझते हैं? आतंकवादी हमले, सेक्स गुलामी, नस्लवाद, दुनिया में भूख से मरते हुए लोग? अवचेतन रूप से, बहुत बार शायद हम अपने आप से प्रश्न पूछते हैं। पर चेतन अवस्था में शायद ही कभी। हम अपना जीवन जीने में इतने व्यस्त रहते हैं कि शायद ही कभी रुकते हैं और हैरान होते हैं कि ऎसा क्यों होता है? पर कभी ऐसा कुछ हो जाता है जिससे हम जाग जाते हैं। हमारे माता-पिता का तलाक हो जाता है, पास के मुहल्ले में रहनेवाली लड़की का कोई अपहरण कर लेता है, या किसी संबंधी को कैंसर हो जाता है। ऐसा होना कुछ समय के लिए हमें जगा देता है। पर बहुत बार हम फिर से अस्वीकृति में डूब जाते हैं। तब तक, जब तक कि किसी दूसरी त्रासदी का सामना नहीं होता। फिर हम सोचने के लिए बाध्य हो जाते हैं, कि यहाँ कुछ सही नहीं है। कुछ ऐसा है जो बिल्कुल गलत है। जीवन को इस तरह का नहीं होना चाहिए! तो, बुरी चीजें ‘क्यों’ होती हैं? यह संसार एक बेहतर जगह क्यों नहीं है? क्यों? इस प्रशन का बाइबल में एक उत्तर पाया जाता है। पर यह वैसा उत्तर नहीं है जो अधिकतर मनुष्य सुनना चाहेंगे: संसार जैसा है वैसा इसलिए है क्योंकि, एक तरह से, ऐसा संसार हमने माँगा है। सुनने में अजीब लगता है? क्या, या कौन इस संसार को बदल सकता है? क्या, या कौन इस बात की गारंटी दे सकता है कि जीवन दुखों से मुक्त होगा, सबके लिए, सब समय? परमेश्वर कर सकता है। परमेश्वर उसे पूरा कर सकता है। पर वह वैसा नहीं करता है। कम से कम इस समय तो नहीं। और परिणामस्वरूप, हम उस से नाराज हैं। हम कहते हैं, “परमेश्वर सशक्त और सभी को प्रेम करनेवाला नहीं हो सकता। अगर वह वैसा होता, तो यह संसार जिस तरह से है, वैसा नहीं होता!” हम ऐसा इस आशा से कहते हैं, कि शायद इस विषय में परमेश्वर अपनी स्थिति बदल दे। हम यह आशा करते हैं कि यदि हम उस को अपराधबोध करेंगे, तो शायद वह जिस तरह काम करता आया है, उसमें बदलाव लाएगा। पर ऐसा लगता है वह अपने ठान से हिलना नहीं चाहता। वह ऐसा क्यों नहीं करता है? परमेश्वर अपने ठान से नहीं हिलता – वह इसी समय चीजों को परिवर्तित नहीं करता है – क्योंकि जो हमने उससे माँगा है, वह हमें वह दे रहा है: एक ऐसा संसार जहाँ हम उसके साथ ऐसा व्यवहार करते है जैसे वह अनुपस्थित और अनावश्यक हो। क्या आपको आदम और हव्वा की कहानी याद है? उन्होंने, “मना किया हुआ फल” खाया था। वह फल एक ‘विचार’ था कि परमेश्वर ने जो उन्हें कहा या जो उन्हें दिया है, उसे वे अनसुना और अनदेखा कर सकते हैं। आदम और हव्वा ने एक तरह से आशा की कि वे बिना परमेश्वर के, परमेश्वर की तरह बन जाएँगे। उन्होंने इस विचार को महत्व दिया कि परमेश्वर के अस्तित्व के अलावा, और उसके साथ एक व्यक्तिगत सम्बंध बनाने से ज़्यादा, कुछ और है जो कि ज्यादा कीमती है। और, इस संसार की प्रणाली--अपनी सभी गलतियों के साथ--उनके इस चुनाव के फलस्वरूप बनी। एक तरह से उनकी कहानी हम सबकी कहानी है। है ना? हम में से कौन है जिसने ये बात कभी नहीं कही है- अगर ऊँचे स्वर में नहीं, कम से कम अपने मन में ही सही- “परमेश्वर मैं सोचता हूँ कि यह काम मैं आपके बिना कर सकता हूँ। मैं अकेले ही यह कर लूंगा। पर प्रस्ताव देने के लिए धन्यवाद।” हम सबने, बिना परमेश्वर के, जीवन को सुचारू रूप से चलाने की कोशिश की है। हम ऐसा क्यों करते हैं? शायद इसलिए क्योंकि हमने इस धारणा को अपना लिया है कि कुछ और चीज़ मूल्यवान, और ज़्यादा महत्वपूर्ण है - परमेश्वर से भी ज्यादा। अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग चीजें हैं, पर मानसिकता सबकी एक जैसी ही है: कि, परमेश्वर जीवन में सबसे अधिक महत्वपूर्ण नहीं है। असल में, मैं बस उनके बिना इसे पूरी तरह से कर लेता हूँ। इस पर परमेश्वर की क्या प्रतिक्रिया है? परमेश्वर हमें यह करने देता है! बहुत से लोगों को इसके दुखद फल का अनुभव होता है, दूसरों के या फिर उनके स्वयं के चुनाव के कारण, जो कि परमेश्वर के तरीके के विपरीत चलता है…हत्या, यौन शोषण, लालच, झूठ, धोखा, बदनामी, व्यभिचार, अपहरण आदि। इन सब बातों को वे लोग समझा सकते हैं, जिन्होंने परमेश्वर को अपने जीवन में आने नहीं दिया, और अपने जीवन को उससे प्रभावित नहीं होने दिया। ये लोग अपने जीवन को उसी तरह से व्यतीत करते हैं जिस तरह वे सोचते हैं कि सही है, जिस कारण वे और दूसरे लोग दुखित रहते हैं। इन सब पर परमेश्वर का क्या दृष्टिकोण है? वह आत्मसंतुष्ट (अपने में ही प्रसन्न) नहीं है। वास्तव में, परमेश्वर को सही तरीके से उसके व्यवहार द्वारा जाना जा सकता है - परमेश्वर का आगे की ओर झुकाव, उसकी करूणा, उसकी यह आशा कि हम उसकी ओर मुड़ें ताकि वह हमें वास्तविक जीवन दे सके। यीशु ने कहा, “हे सब परिश्रम करने वालों और बोझ से दबे लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।”1 पर सभी उसके साथ चलने के इच्छुक नहीं थे। य़ीशु ने उसपर टिप्पणी करते हुए यह कहा, “हे यरूशलेम, हे यरूशलेम; तू जो भविष्यद्वक्ताओं को मार डालता है, और जो तेरे पास भेजे गए, उन्हें पत्थरवाह करता है, कितनी ही बार मैं ने चाहा कि जैसे मुर्गी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठे करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बालकों को इकट्ठे कर लूं, परन्तु तुम ने न चाहा।”2 एक बार फिर यीशु उसके साथ हमारे रिश्ते के विषय को वापस लाते हैं, “जगत की ज्योति मैं हूं; जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अन्धकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा।”3 पर, तब क्या जब जीवन ही अनुचित हो, जब बुरी चीज़ें हमारे जीवन में होती हैं? उन भयंकर परिस्थितियों का क्या करें जिनकी मार हमारे जीवन में पड़ती है, जिनका कारण हम नहीं बल्कि कोई और है। जब हमें ऐसा लगता है कि हम सताए गए हैं, तब यह एहसास करना लाभप्रद है कि स्वयं परमेश्वर ने दूसरों का बुरा व्यवहार सहा है। आप जो अनुभव कर रहे हैं, परमेश्वर पूरा समझते हैं। हमारे लिए यीशु ने जो सहा, उससे अधिक दर्दनाक जीवन में कुछ नहीं है- उनके मित्रों ने उनका साथ छोड़ दिया, जो उनपर विश्वास नहीं करते थे उन्होंने उनका उपहास किया, सूली पर चढ़ाए जाने से पहले उन्हें मारा गया और सताया गया, क्रूस पर कीलें ठोक कर उन्हें लटकाया गया, शर्मनाक सार्वजनिक प्रदर्शन किया गया और धीरे-धीरे, दम घुटने से उनकी मृत्यु हो गई। उन्होंने हमारी रचना की, फिर भी मानव जाति को अपने ऊपर अत्याचार करने की छूट दी, ताकि पवित्र शास्त्र में जो लिखा है वह पूरा हो सके, और हमें अपने पापों से मुक्ति मिल सके। यीशु के लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। उन्हें पता था कि क्या होनेवाला है- पूरी बातों का, पूरे दर्द का, पूरी प्रतारणा का, उन्हें विस्तार से पूर्वज्ञान था। “यीशु यरूशलेम को जाते हुए बारह चेलों को एकान्त में ले गया, और मार्ग में उन से कहने लगा, “देखो, हम यरूशलेम को जाते हैं; और मनुष्य का पुत्र महायाजकों और शास्त्रियों के हाथ पकड़वाया जाएगा और वे उस को घात के योग्य हाथ पकड़वाया जाएगा और वे उस को घात के योग्य ठहराएंगे। और उस को अन्यजातियों के हाथ सोंपेंगे, कि वे उसे ठट्ठों में उड़ाएं, और कोड़े मारें, और क्रूस पर चढ़ाएं, और वह तीसरे दिन जिलाया जाएगा॥”4 कल्पना कीजिए कि आपको पता है कि आपके साथ कुछ भयानक होनेवाला है। यीशु संवेगात्मक और मनोवैज्ञानिक पीड़ा को समझते हैं। जिस रात को यीशु को पता था कि उन्हें कैद कर लिया जाएगा, वह प्रार्थना के लिए गए, पर अपने साथ अपने कुछ मित्रों को ले गए। “और वह पतरस और जब्दी के दोनों पुत्रों को साथ ले गया, और उदास और व्याकुल होने लगा। तब उस ने उन से कहा, “मेरा जी बहुत उदास है, यहां तक कि मेरे प्राण निकला जा रहा है। तुम यहीं ठहरो, और मेरे साथ जागते रहो” फिर वह थोड़ा और आगे बढ़कर मुंह के बल गिरा, और यह प्रार्थना करने लगा, “हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा मुझ से टल जाए; तौभी जैसा मैं चाहता हूं वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।”5 हालांकि यीशु ने अपने तीन मित्रों को यह बताया, वे यीशु की पीड़ा को गहराई से समझ नहीं पाए, और जब यीशु प्रर्थना के बाद वापस आए तो उन्होंने देखा कि वे तीनों सो रहे थे। यीशु यह जनता है कि दुख/पीड़ा और अत्यंत उदासी से अकेले गुजरना क्या होता है। यहाँ ये संक्षिप्त रूप में दिया गया है, जैसे यूहन्ना ने (बाइबल में) सुसमाचार में लिखा है, “वह जगत में था, और जगत उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जगत ने उसे नहीं पहिचाना। वह अपने घर आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया। परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं।”6 “परमेश्वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिये नहीं भेजा, कि जगत पर दण्ड की आज्ञा दे, परन्तु इसलिये कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए। क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।”7 इस में कोई सवाल या संदेह नहीं है कि इस संसार में अत्यंत दुख और तीव्र पीड़ा है। इनमें से कुछ का विवरण दूसरों की ओर से स्वार्थीपन, और घृणित कार्यों द्वारा समझाया जा सकता है। पर कई दुखों/और पीड़ाओं को इस जीवन में समझाया भी नहीं जा सकता। पर उसके लिए परमेश्वर स्वयं को हमारे लिए प्रस्तुत करते हैं। परमेश्वर हमें यह ज्ञान देते हैं कि उन्होंने भी दुख सहा है, और उन्हें हमारे दर्द और जरूरतों का एहसास है। यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, “तुम्हारे लिए मैं शान्ति छोड़े जाता हूँ; मैं तुम्हें अपनी शान्ति दे रहा हूँ; वैसी नहीं, जैसी संसार देता है। अपने मन को व्याकुल और भयभीत न होने दो।”8 भयभीत और परेशान होने के लिए प्रचुर कारण है, पर परमेश्वर हमें अपनी शांति देता है, जो कि हमारी समस्या या परेशानी से अधिक बड़ी है। वह आखिरकार, परमेश्वर, हमारा रचयिता है। वह जो हमेशा से अस्तित्व में है। वह जिसने इस ब्रह्मांड की आसानी से रचना की। इतना शक्तिमान होते हुए भी, वह हम सब को घनिष्टता से जानता है, यहां तक कि हमारे सबसे छोटे, महत्वहीन विवरणों को भी। और यदि हम अपने जीवन के लिए उस पर भरोसा करें, उस पर निर्भर रहें, चाहे हमें कठिनाइयों का सामना करना पड़े, वह हमें सुरक्षित रखेगा। यीशु ने कहा, “मैंने तुमसे ये सब इसलिए कहा है कि तुम्हें मुझमें शान्ति प्राप्त हो. संसार में तुम्हारे लिए क्लेश ही क्लेश है किन्तु आनन्दित हो कि मैंने संसार पर विजय प्राप्त की है।”9 वह हमारे लिए खतरे की चरम सीमा तक गया -- मृत्यु -- और उसपर विजय पाई। यदि हम उसपर विश्वास करेंगे, तो वह हमें जीवन की कठिन परिस्थितियों के पार ले जाएगा, और फिर हमें अनंत जीवन में लाएगा। हम अपने जीवन में या तो परमेश्वर के साथ चल सकते हैं या उसके बिना चल सकते हैं। यीशु ने प्रार्थना की, “हे धार्मिक पिता, संसार ने मुझे नहीं जाना, परन्तु मैं ने तुझे जाना और इन्होंने भी जाना कि तू ही ने मुझे भेजा। और मैं ने तेरा नाम उन को बताया और बताता रहूंगा कि जो प्रेम तुझ को मुझ से था वह उन में रहे, और मैं उनमें रहूं॥”10 आप अपने आप से यह प्रशन पूछते हुए दिखाई दे सकते हैं, “जीवन इतना कठिन क्यों है?” परमेश्वर के बिना, मानवता आसानी से, नफरत, नस्लवाद, यौन दुर्व्यवहार, एक-दूसरे की हत्या, जैसी चीज़ों में खींची चली जाती है। यीशु ने कहा, “मैं इसलिए आया कि वे जीवन पाएँ, और बहुतायत का जीवन पाएँ।”11 यह जानने के लिए कि परमेश्वर के साथ एक रिश्ते की शुरुआत कैसे करें, कृपया देखिए:

  जीवन से संबंधित प्रश्न जीवन इतना कठिन क्यों है?  By  वनिता कासनियां पंजाब “क्यों?” जब जीवन कठिन हो, तब शांति पाने का क्या कोई रास्ता है? जो कुछ हम इस दुनिया में देखते उसे कैसे समझते हैं? आतंकवादी हमले, सेक्स गुलामी, नस्लवाद, दुनिया में भूख से मरते हुए लोग? अवचेतन रूप से, बहुत बार शायद हम अपने आप से प्रश्न पूछते हैं। पर चेतन अवस्था में शायद ही कभी। हम अपना जीवन जीने में इतने व्यस्त रहते हैं कि शायद ही कभी रुकते हैं और हैरान होते हैं कि ऎसा क्यों होता है? पर कभी ऐसा कुछ हो जाता है जिससे हम जाग जाते हैं। हमारे माता-पिता का तलाक हो जाता है, पास के मुहल्ले में रहनेवाली लड़की का कोई अपहरण कर लेता है, या किसी संबंधी को कैंसर हो जाता है। ऐसा होना कुछ समय के लिए हमें जगा देता है। पर बहुत बार हम फिर से अस्वीकृति में डूब जाते हैं। तब तक, जब तक कि किसी दूसरी त्रासदी का सामना नहीं होता। फिर हम सोचने के लिए बाध्य हो जाते हैं,  कि यहाँ कुछ सही नहीं है। कुछ ऐसा है जो बिल्कुल गलत है। जीवन को इस तरह का नहीं होना चाहिए! तो, बुरी चीजें ‘क्यों’ होती हैं? यह संसार एक बेहतर जगह क्यों नही...

जीवन से संबंधित प्रश्नजीवन इतना कठिन क्यों है? By वनिता कासनियां पंजाब “क्यों?” जब जीवन कठिन हो, तब शांति पाने का क्या कोई रास्ता है?जो कुछ हम इस दुनिया में देखते उसे कैसे समझते हैं? आतंकवादी हमले, सेक्स गुलामी, नस्लवाद, दुनिया में भूख से मरते हुए लोग?अवचेतन रूप से, बहुत बार शायद हम अपने आप से प्रश्न पूछते हैं। पर चेतन अवस्था में शायद ही कभी। हम अपना जीवन जीने में इतने व्यस्त रहते हैं कि शायद ही कभी रुकते हैं और हैरान होते हैं कि ऎसा क्यों होता है?पर कभी ऐसा कुछ हो जाता है जिससे हम जाग जाते हैं। हमारे माता-पिता का तलाक हो जाता है, पास के मुहल्ले में रहनेवाली लड़की का कोई अपहरण कर लेता है, या किसी संबंधी को कैंसर हो जाता है। ऐसा होना कुछ समय के लिए हमें जगा देता है। पर बहुत बार हम फिर से अस्वीकृति में डूब जाते हैं। तब तक, जब तक कि किसी दूसरी त्रासदी का सामना नहीं होता। फिर हम सोचने के लिए बाध्य हो जाते हैं, कि यहाँ कुछ सही नहीं है। कुछ ऐसा है जो बिल्कुल गलत है। जीवन को इस तरह का नहीं होना चाहिए!तो, बुरी चीजें ‘क्यों’ होती हैं?यह संसार एक बेहतर जगह क्यों नहीं है?क्यों? इस प्रशन का बाइबल में एक उत्तर पाया जाता है। पर यह वैसा उत्तर नहीं है जो अधिकतर मनुष्य सुनना चाहेंगे: संसार जैसा है वैसा इसलिए है क्योंकि, एक तरह से, ऐसा संसार हमने माँगा है।सुनने में अजीब लगता है?क्या, या कौन इस संसार को बदल सकता है? क्या, या कौन इस बात की गारंटी दे सकता है कि जीवन दुखों से मुक्त होगा, सबके लिए, सब समय?परमेश्वर कर सकता है। परमेश्वर उसे पूरा कर सकता है। पर वह वैसा नहीं करता है। कम से कम इस समय तो नहीं। और परिणामस्वरूप, हम उस से नाराज हैं। हम कहते हैं, “परमेश्वर सशक्त और सभी को प्रेम करनेवाला नहीं हो सकता। अगर वह वैसा होता, तो यह संसार जिस तरह से है, वैसा नहीं होता!”हम ऐसा इस आशा से कहते हैं, कि शायद इस विषय में परमेश्वर अपनी स्थिति बदल दे। हम यह आशा करते हैं कि यदि हम उस को अपराधबोध करेंगे, तो शायद वह जिस तरह काम करता आया है, उसमें बदलाव लाएगा।पर ऐसा लगता है वह अपने ठान से हिलना नहीं चाहता। वह ऐसा क्यों नहीं करता है?परमेश्वर अपने ठान से नहीं हिलता – वह इसी समय चीजों को परिवर्तित नहीं करता है – क्योंकि जो हमने उससे माँगा है, वह हमें वह दे रहा है: एक ऐसा संसार जहाँ हम उसके साथ ऐसा व्यवहार करते है जैसे वह अनुपस्थित और अनावश्यक हो।क्या आपको आदम और हव्वा की कहानी याद है? उन्होंने, “मना किया हुआ फल” खाया था। वह फल एक ‘विचार’ था कि परमेश्वर ने जो उन्हें कहा या जो उन्हें दिया है, उसे वे अनसुना और अनदेखा कर सकते हैं। आदम और हव्वा ने एक तरह से आशा की कि वे बिना परमेश्वर के, परमेश्वर की तरह बन जाएँगे।उन्होंने इस विचार को महत्व दिया कि परमेश्वर के अस्तित्व के अलावा, और उसके साथ एक व्यक्तिगत सम्बंध बनाने से ज़्यादा, कुछ और है जो कि ज्यादा कीमती है। और, इस संसार की प्रणाली--अपनी सभी गलतियों के साथ--उनके इस चुनाव के फलस्वरूप बनी।एक तरह से उनकी कहानी हम सबकी कहानी है। है ना? हम में से कौन है जिसने ये बात कभी नहीं कही है- अगर ऊँचे स्वर में नहीं, कम से कम अपने मन में ही सही- “परमेश्वर मैं सोचता हूँ कि यह काम मैं आपके बिना कर सकता हूँ। मैं अकेले ही यह कर लूंगा। पर प्रस्ताव देने के लिए धन्यवाद।”हम सबने, बिना परमेश्वर के, जीवन को सुचारू रूप से चलाने की कोशिश की है।हम ऐसा क्यों करते हैं? शायद इसलिए क्योंकि हमने इस धारणा को अपना लिया है कि कुछ और चीज़ मूल्यवान, और ज़्यादा महत्वपूर्ण है - परमेश्वर से भी ज्यादा। अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग चीजें हैं, पर मानसिकता सबकी एक जैसी ही है: कि, परमेश्वर जीवन में सबसे अधिक महत्वपूर्ण नहीं है। असल में, मैं बस उनके बिना इसे पूरी तरह से कर लेता हूँ।इस पर परमेश्वर की क्या प्रतिक्रिया है?परमेश्वर हमें यह करने देता है! बहुत से लोगों को इसके दुखद फल का अनुभव होता है, दूसरों के या फिर उनके स्वयं के चुनाव के कारण, जो कि परमेश्वर के तरीके के विपरीत चलता है…हत्या, यौन शोषण, लालच, झूठ, धोखा, बदनामी, व्यभिचार, अपहरण आदि।इन सब बातों को वे लोग समझा सकते हैं, जिन्होंने परमेश्वर को अपने जीवन में आने नहीं दिया, और अपने जीवन को उससे प्रभावित नहीं होने दिया। ये लोग अपने जीवन को उसी तरह से व्यतीत करते हैं जिस तरह वे सोचते हैं कि सही है, जिस कारण वे और दूसरे लोग दुखित रहते हैं।इन सब पर परमेश्वर का क्या दृष्टिकोण है?वह आत्मसंतुष्ट (अपने में ही प्रसन्न) नहीं है। वास्तव में, परमेश्वर को सही तरीके से उसके व्यवहार द्वारा जाना जा सकता है - परमेश्वर का आगे की ओर झुकाव, उसकी करूणा, उसकी यह आशा कि हम उसकी ओर मुड़ें ताकि वह हमें वास्तविक जीवन दे सके।यीशु ने कहा, “हे सब परिश्रम करने वालों और बोझ से दबे लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।”1 पर सभी उसके साथ चलने के इच्छुक नहीं थे। य़ीशु ने उसपर टिप्पणी करते हुए यह कहा, “हे यरूशलेम, हे यरूशलेम; तू जो भविष्यद्वक्ताओं को मार डालता है, और जो तेरे पास भेजे गए, उन्हें पत्थरवाह करता है, कितनी ही बार मैं ने चाहा कि जैसे मुर्गी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठे करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बालकों को इकट्ठे कर लूं, परन्तु तुम ने न चाहा।”2एक बार फिर यीशु उसके साथ हमारे रिश्ते के विषय को वापस लाते हैं, “जगत की ज्योति मैं हूं; जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अन्धकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा।”3पर, तब क्या जब जीवन ही अनुचित हो, जब बुरी चीज़ें हमारे जीवन में होती हैं?उन भयंकर परिस्थितियों का क्या करें जिनकी मार हमारे जीवन में पड़ती है, जिनका कारण हम नहीं बल्कि कोई और है। जब हमें ऐसा लगता है कि हम सताए गए हैं, तब यह एहसास करना लाभप्रद है कि स्वयं परमेश्वर ने दूसरों का बुरा व्यवहार सहा है। आप जो अनुभव कर रहे हैं, परमेश्वर पूरा समझते हैं।हमारे लिए यीशु ने जो सहा, उससे अधिक दर्दनाक जीवन में कुछ नहीं है- उनके मित्रों ने उनका साथ छोड़ दिया, जो उनपर विश्वास नहीं करते थे उन्होंने उनका उपहास किया, सूली पर चढ़ाए जाने से पहले उन्हें मारा गया और सताया गया, क्रूस पर कीलें ठोक कर उन्हें लटकाया गया, शर्मनाक सार्वजनिक प्रदर्शन किया गया और धीरे-धीरे, दम घुटने से उनकी मृत्यु हो गई।उन्होंने हमारी रचना की, फिर भी मानव जाति को अपने ऊपर अत्याचार करने की छूट दी, ताकि पवित्र शास्त्र में जो लिखा है वह पूरा हो सके, और हमें अपने पापों से मुक्ति मिल सके। यीशु के लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। उन्हें पता था कि क्या होनेवाला है- पूरी बातों का, पूरे दर्द का, पूरी प्रतारणा का, उन्हें विस्तार से पूर्वज्ञान था।“यीशु यरूशलेम को जाते हुए बारह चेलों को एकान्त में ले गया, और मार्ग में उन से कहने लगा, “देखो, हम यरूशलेम को जाते हैं; और मनुष्य का पुत्र महायाजकों और शास्त्रियों के हाथ पकड़वाया जाएगा और वे उस को घात के योग्यहाथ पकड़वाया जाएगा और वे उस को घात के योग्य ठहराएंगे। और उस को अन्यजातियों के हाथ सोंपेंगे, कि वे उसे ठट्ठों में उड़ाएं, और कोड़े मारें, और क्रूस पर चढ़ाएं, और वह तीसरे दिन जिलाया जाएगा॥”4कल्पना कीजिए कि आपको पता है कि आपके साथ कुछ भयानक होनेवाला है। यीशु संवेगात्मक और मनोवैज्ञानिक पीड़ा को समझते हैं। जिस रात को यीशु को पता था कि उन्हें कैद कर लिया जाएगा, वह प्रार्थना के लिए गए, पर अपने साथ अपने कुछ मित्रों को ले गए।“और वह पतरस और जब्दी के दोनों पुत्रों को साथ ले गया, और उदास और व्याकुल होने लगा। तब उस ने उन से कहा, “मेरा जी बहुत उदास है, यहां तक कि मेरे प्राण निकला जा रहा है। तुम यहीं ठहरो, और मेरे साथ जागते रहो” फिर वह थोड़ा और आगे बढ़कर मुंह के बल गिरा, और यह प्रार्थना करने लगा, “हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा मुझ से टल जाए; तौभी जैसा मैं चाहता हूं वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।”5हालांकि यीशु ने अपने तीन मित्रों को यह बताया, वे यीशु की पीड़ा को गहराई से समझ नहीं पाए, और जब यीशु प्रर्थना के बाद वापस आए तो उन्होंने देखा कि वे तीनों सो रहे थे। यीशु यह जनता है कि दुख/पीड़ा और अत्यंत उदासी से अकेले गुजरना क्या होता है।यहाँ ये संक्षिप्त रूप में दिया गया है, जैसे यूहन्ना ने (बाइबल में) सुसमाचार में लिखा है, “वह जगत में था, और जगत उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जगत ने उसे नहीं पहिचाना। वह अपने घर आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया। परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं।”6 “परमेश्वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिये नहीं भेजा, कि जगत पर दण्ड की आज्ञा दे, परन्तु इसलिये कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए। क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।”7इस में कोई सवाल या संदेह नहीं है कि इस संसार में अत्यंत दुख और तीव्र पीड़ा है।इनमें से कुछ का विवरण दूसरों की ओर से स्वार्थीपन, और घृणित कार्यों द्वारा समझाया जा सकता है। पर कई दुखों/और पीड़ाओं को इस जीवन में समझाया भी नहीं जा सकता। पर उसके लिए परमेश्वर स्वयं को हमारे लिए प्रस्तुत करते हैं। परमेश्वर हमें यह ज्ञान देते हैं कि उन्होंने भी दुख सहा है, और उन्हें हमारे दर्द और जरूरतों का एहसास है। यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, “तुम्हारे लिए मैं शान्ति छोड़े जाता हूँ; मैं तुम्हें अपनी शान्ति दे रहा हूँ; वैसी नहीं, जैसी संसार देता है। अपने मन को व्याकुल और भयभीत न होने दो।”8भयभीत और परेशान होने के लिए प्रचुर कारण है, पर परमेश्वर हमें अपनी शांति देता है, जो कि हमारी समस्या या परेशानी से अधिक बड़ी है। वह आखिरकार, परमेश्वर, हमारा रचयिता है। वह जो हमेशा से अस्तित्व में है। वह जिसने इस ब्रह्मांड की आसानी से रचना की।इतना शक्तिमान होते हुए भी, वह हम सब को घनिष्टता से जानता है, यहां तक कि हमारे सबसे छोटे, महत्वहीन विवरणों को भी। और यदि हम अपने जीवन के लिए उस पर भरोसा करें, उस पर निर्भर रहें, चाहे हमें कठिनाइयों का सामना करना पड़े, वह हमें सुरक्षित रखेगा।यीशु ने कहा, “मैंने तुमसे ये सब इसलिए कहा है कि तुम्हें मुझमें शान्ति प्राप्त हो. संसार में तुम्हारे लिए क्लेश ही क्लेश है किन्तु आनन्दित हो कि मैंने संसार पर विजय प्राप्त की है।”9 वह हमारे लिए खतरे की चरम सीमा तक गया -- मृत्यु -- और उसपर विजय पाई। यदि हम उसपर विश्वास करेंगे, तो वह हमें जीवन की कठिन परिस्थितियों के पार ले जाएगा, और फिर हमें अनंत जीवन में लाएगा।हम अपने जीवन में या तो परमेश्वर के साथ चल सकते हैं या उसके बिना चल सकते हैं।यीशु ने प्रार्थना की, “हे धार्मिक पिता, संसार ने मुझे नहीं जाना, परन्तु मैं ने तुझे जाना और इन्होंने भी जाना कि तू ही ने मुझे भेजा। और मैं ने तेरा नाम उन को बताया और बताता रहूंगा कि जो प्रेम तुझ को मुझ से था वह उन में रहे, और मैं उनमें रहूं॥”10आप अपने आप से यह प्रशन पूछते हुए दिखाई दे सकते हैं, “जीवन इतना कठिन क्यों है?” परमेश्वर के बिना, मानवता आसानी से, नफरत, नस्लवाद, यौन दुर्व्यवहार, एक-दूसरे की हत्या, जैसी चीज़ों में खींची चली जाती है।यीशु ने कहा, “मैं इसलिए आया कि वे जीवन पाएँ, और बहुतायत का जीवन पाएँ।”11 यह जानने के लिए कि परमेश्वर के साथ एक रिश्ते की शुरुआत कैसे करें, कृपया देखिए:

जीवन से संबंधित प्रश्न जीवन इतना कठिन क्यों है?  By  वनिता कासनियां पंजाब “क्यों?” जब जीवन कठिन हो, तब शांति पाने का क्या कोई रास्ता है? जो कुछ हम इस दुनिया में देखते उसे कैसे समझते हैं? आतंकवादी हमले, सेक्स गुलामी, नस्लवाद, दुनिया में भूख से मरते हुए लोग? अवचेतन रूप से, बहुत बार शायद हम अपने आप से प्रश्न पूछते हैं। पर चेतन अवस्था में शायद ही कभी। हम अपना जीवन जीने में इतने व्यस्त रहते हैं कि शायद ही कभी रुकते हैं और हैरान होते हैं कि ऎसा क्यों होता है? पर कभी ऐसा कुछ हो जाता है जिससे हम जाग जाते हैं। हमारे माता-पिता का तलाक हो जाता है, पास के मुहल्ले में रहनेवाली लड़की का कोई अपहरण कर लेता है, या किसी संबंधी को कैंसर हो जाता है। ऐसा होना कुछ समय के लिए हमें जगा देता है। पर बहुत बार हम फिर से अस्वीकृति में डूब जाते हैं। तब तक, जब तक कि किसी दूसरी त्रासदी का सामना नहीं होता। फिर हम सोचने के लिए बाध्य हो जाते हैं,  कि यहाँ कुछ सही नहीं है। कुछ ऐसा है जो बिल्कुल गलत है। जीवन को इस तरह का नहीं होना चाहिए! तो, बुरी चीजें ‘क्यों’ होती हैं? यह संसार एक बेहतर जगह क्यों नहीं है? क...
����जय श्री गणेश जी���� पूरा आकार देखें मुझसे संपर्क करें ईमेल मेरा वेब पेज Vnita kasnia punjab (Yahoo) इस दिन से Blogger पर अक्तूबर 2020 प्रोफ़ाइल दृश्य - 337 मेरे ब्लॉग वाहे गुरू SEO राम नाम बैंक खेती Vastu महात्मा गांधी श्री लक्ष्मी मां 🚩🪴जय श्री गणेश जी🪴🚩 Facbook श्रीमद् भागवत महापुराण सम्पूर्ण संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित होली पितृ दोष मुक्ति के उपाय ⇐ पितृदोष किसे कहते है ? Happy Father,s day AAP बड़ी सोच का बड़ा जादू गीता ज्ञान 🚩🪴श्री दुर्गा माता🪴🚩 🚩🪴राधे राधे🪴🚩 Google AdSense Kirsan Ji Business 🪴💞मां💞🪴 क्रिकेट मैच रामायण सम्पूर्ण हल्दी के फायदे पाक विधि 🎚️✝️🪴यीशु मसीह 🪴✝️🎚️ कुंडली आरती संग्रह पंजाब फिटकरी के फायदे Covid-19 बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम श्री राम के भजन 💞💞कहानियां💞💞 अलसी के फ़ायदे वनिता कासनियां पंजाब 'श्रीमद्भागवत पुराण' 🌺🌿स्वास्थ्य घरेलू नुस्खे🌿🌺 चालीसा संग्रह दीपावली पूजन Title जय श्री राम सौर मंडल हनुमान जी के भजन फिजियो थेरेपी पंजाब Blogger भजन कट्टर हिन्दू